Monday, November 28, 2011

गज़ल

हाँ मुमकिन है बेशक, उसका ख़ुदा होना,
इन्सां को नहीं हासिल मगर इन्सां होना |

पढ़ रक्खा है सबने ही सबक नेकी का लेकिन,
है शराफत का हशर सहूलियत पे फना होना |

कुफ्र को ही देखो ईमान बना लिया हमने,
रास आता न था हमको भी बे-ईमां होना |

के भड़कते नहीं शोले दिलों में शायरी से अब,
बढ़ रहा है यों हर शेर पे वाह-वाह होना |

उठेंगी उँगलियाँ ही बस जो आवाज़ दोगे,
मुश्किल है हाथ बढ़ाने का हौसला होना |

मर जाओगे तो कहेंगे लोग - भला था "कर्मू"
ले तेरे होने से अच्छा है तेरा ना होना |