Thursday, November 21, 2013

गज़ल

मुझको भी अब इबादत नई सिखा दे कोई,
नए ख़ुदा का आए मुझको पता दे कोई

मस्जिदों में अब केवल बुत ही नज़र आते हैं
करे एहसान अगर को मैखाना दिखा दे कोई

मयकशी का तो होता है फिर भी इलाज़ मुमकिन
"मैं" का नशा है सबको, कैसे सज़ा दे कोई

गुनाहगार थे सभी जो, मसीहा बने पड़े हैं
सूली चढ़े वो ईसा, ये रवाज़ हटा दे कोई

हुई ख़ता के "शम्स" अबतलक जो चुप है,
कह भी दिया तो सुनेगा कौन, बता दे कोई

Thursday, November 14, 2013

Weak Prime Minister

ताज्जुब नहीं,
के हमें ये मानने में मुश्किल होती है,
किसीने जेल में बैठे-बैठे,
सभ्यता का पूरा इतिहास टटोल लिया,
असंख्य बंधनों और विविधताओं के बीच छुपे
भारत को खोज लिया!
आज देश आज़ाद है, सामने है
पर हम उसको तोड़ रहे हैं
अपने हिसाब से हम सब
अपना अपना भारत बटोर रहे हैं

ताज्जुब नहीं,
के हमें ये मानने में मुश्किल होती है,
आदर्श और उसूलों की राजनीति भी हुआ करती थी कभी
उस दौर में,
जब पूरा विश्व "शक्ति परिक्षण" का मंच था
कोई पंचशील और गुटनिरपेक्षता को अमर कर गया
आज राजनीति में,
विचारों कि बात करना हास्यास्पद है,
अहिंसा कि तरह, गुटनिरपेक्षता भी,
कायरों का, कमज़ोरों का मद है

ताज्जुब नहीं,
के हमें ये मानने में मुश्किल होती है,
कैसे कोई नेता खुद आलोचनाओं को बढ़ावा देता था
मतभेदों के साथ भी कुछ किया जा सकता है
ये बताया करता था
आज खुद पे सवाल उठना किसी को गवारा नहीं
अपने खिलाफ एक शब्द सुनता
छुटभैया नेता तक हमारा नहीं

इसलिए ताज्जुब नहीं,
के तुम्हें कमज़ोर करार दिया जाता है,
शालीनता, सहिष्णुता पर,
कठोरता से प्रहार किया जाता है

"स्ट्रांग" लीडर्स कि फ़ौज़,
जब-जब देश को कमज़ोर बनाएगी,
मज़बूत भारत के उस
"वीक" प्रधानमंत्री की याद आएगी!