Saturday, August 24, 2013

त्रिवेणी

हवा के झोंके से वो सरकना दुपट्टे का,
वो लटों से आँख मिचौली खेलता रुखसार,

लोग सच ही कहते थे, आज ईद है!

Constitution (Forty second Amendment) Act

कर्त्तव्य की भावना जब मौलिक ना रही,
मौलिक कर्त्तव्यों का एक अध्याय आ गया!

चंद नज़्म, जश्न-इ-आज़ादी पर

छयासठ बरस में हमनें, कहते हो क्या पाया है?
उम्मीद का वादा था, वादा तो निभाया है!

***

चीन पर, पाकिस्तान पर कभी, उठी ऊँगली और हो गयी वतनपरस्ती?
छयासठ बरस बीत गए, आओ इस नादानी से भी आज़ाद हो जायें!

बंधन या आज़ादी?

उड़ती हुई पतंग...
डोर को, मन ही मन,
कोसती ज़रूर होगी
इस बंधन में शायद,
छटपटाहट भी होती हो
"क्या मुझे हक़ नहीं स्वच्छंद उड़ने का?"
मगर जब डोर कट जाती है,
तो उड़ान भी खतम...
हवाओं में भटक कर,
पड़ी होती है किसी पेड़ की डाली में,
बेबस, लाचार...

डोर से बंधी पतंग,
शायद,
आज़ादी के मायने सिखा जाती है!