Saturday, August 24, 2013

बंधन या आज़ादी?

उड़ती हुई पतंग...
डोर को, मन ही मन,
कोसती ज़रूर होगी
इस बंधन में शायद,
छटपटाहट भी होती हो
"क्या मुझे हक़ नहीं स्वच्छंद उड़ने का?"
मगर जब डोर कट जाती है,
तो उड़ान भी खतम...
हवाओं में भटक कर,
पड़ी होती है किसी पेड़ की डाली में,
बेबस, लाचार...

डोर से बंधी पतंग,
शायद,
आज़ादी के मायने सिखा जाती है!

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