Saturday, January 29, 2011

जो खुबसूरत कहूँ, तो खूबसूरती को गुरूर हो

तेरा आना जहाँ में जैसे कोई दस्तूर हो,

ग़म से भरी दुनिया, इक "ख़ुशी" तो ज़रूर हो |


निगाहें तो औरों की भी होंगी मयकशी,

तेरी खुशबू बस छू जाए 'गर तो सुरूर हो |


लालची-दिल बिदक जाये तुझे जो कोई और देखे,

सिरफ मेरे दिल के घरौंदे में तू मशहूर हो |


ख़यालों से एक पल भी तू जुदा न हुई,

तो क्या हुआ के निगाहों से अभी दूर हो |


मिलन की आस में लिखे शेर तो आयत हो गए,

अर्जियाँ, दरबार में उसके, जाने कब मंज़ूर हो |


इंतज़ार में तेरे, हर रोज़ मेरा रोज़े सा हुआ,

हो दीदार मयस्सर, तो अपनी ईद हुज़ूर हो |


लब्ज़ कहाँ से लाए तेरे इस्तकबाल को "कर्मू",

जो खुबसूरत कहूँ, तो खूबसूरती को गुरूर हो |




सुरूर = नशा

इस्तकबाल = स्वागत/तारीफ

आयत = पवित्र कुरान की पंक्तियाँ

मयस्सर = नसीब


Friday, January 21, 2011

गज़ल

आलीम हैं, इससे ज़्यादा और क्या करेंगे?
शेर लिखेंगे, और वक्त ज़ाया करेंगे ।

कुछ करने की उम्मीद मत करना हमसे,
जहाँ-ए-बेदार सुनाएंगे, बातें बनाया करेंगे ।

हाकीमों के नगमें सुनाया किये हैं,
आवाम बेज़ुबाँ, फिर क्या गाया करेंगे?

हम-मज़हब हुआ तो फ़रिश्ता, वरना काफ़िर
इंसाँ को कब इंसाँ बुलाया करेंगे?

शुतुरमुर्ग-सा रेतों में दबाए रखा सर,
सोचा के सबकुछ खुदाया करेंगे!

नुक्स ढूंढा करते थे मुद्दों पे अकसर,
नुस्खे का हुनर अब दिखाया करेंगे ।

हुकूमत ने मोहरों-सा खेला है अबतक,
मोहरे अब सियासत में अदब लाया करेंगे ।




आलीम = बुद्धिजीवी, विद्वान
ज़ाया = बर्बाद
जहाँ-ए-बेदार = मुश्किलों भरी दुनिया
हाकीम = सत्ताधारी
हम-मज़हब = अपने धर्म का
नुक्स = खोट, गलतियाँ
नुस्खे = हल, समाधान
मोहरों-से = मोहरों की तरह
हुकूमत = सरकार
सियासत = राजनीति