Friday, January 21, 2011

गज़ल

आलीम हैं, इससे ज़्यादा और क्या करेंगे?
शेर लिखेंगे, और वक्त ज़ाया करेंगे ।

कुछ करने की उम्मीद मत करना हमसे,
जहाँ-ए-बेदार सुनाएंगे, बातें बनाया करेंगे ।

हाकीमों के नगमें सुनाया किये हैं,
आवाम बेज़ुबाँ, फिर क्या गाया करेंगे?

हम-मज़हब हुआ तो फ़रिश्ता, वरना काफ़िर
इंसाँ को कब इंसाँ बुलाया करेंगे?

शुतुरमुर्ग-सा रेतों में दबाए रखा सर,
सोचा के सबकुछ खुदाया करेंगे!

नुक्स ढूंढा करते थे मुद्दों पे अकसर,
नुस्खे का हुनर अब दिखाया करेंगे ।

हुकूमत ने मोहरों-सा खेला है अबतक,
मोहरे अब सियासत में अदब लाया करेंगे ।




आलीम = बुद्धिजीवी, विद्वान
ज़ाया = बर्बाद
जहाँ-ए-बेदार = मुश्किलों भरी दुनिया
हाकीम = सत्ताधारी
हम-मज़हब = अपने धर्म का
नुक्स = खोट, गलतियाँ
नुस्खे = हल, समाधान
मोहरों-से = मोहरों की तरह
हुकूमत = सरकार
सियासत = राजनीति

2 comments:

Unknown said...

chand panktiyo me bahut kuch keh diya hai. samaj ke teen tarah ke logo ko ek sath pesh karne wali bahut hi tarif-e-kabil gazal hai.

नुक्स ढूंढा करते थे मुद्दों पे अकसर,
नुस्खे का हुनर अब दिखाया करेंगे ।

paripartan ke prati sakaratmak soch ka bahut hi umda udaaran hai.

lage raho!!!!

अभिनव said...

bahut bahut dhanyawad :)
ghazal ki duniya me pehla kadam tha, to socha sabse pehla war apne jaise "buddhijiviyon" pe hi kiya jaye