Saturday, January 29, 2011

जो खुबसूरत कहूँ, तो खूबसूरती को गुरूर हो

तेरा आना जहाँ में जैसे कोई दस्तूर हो,

ग़म से भरी दुनिया, इक "ख़ुशी" तो ज़रूर हो |


निगाहें तो औरों की भी होंगी मयकशी,

तेरी खुशबू बस छू जाए 'गर तो सुरूर हो |


लालची-दिल बिदक जाये तुझे जो कोई और देखे,

सिरफ मेरे दिल के घरौंदे में तू मशहूर हो |


ख़यालों से एक पल भी तू जुदा न हुई,

तो क्या हुआ के निगाहों से अभी दूर हो |


मिलन की आस में लिखे शेर तो आयत हो गए,

अर्जियाँ, दरबार में उसके, जाने कब मंज़ूर हो |


इंतज़ार में तेरे, हर रोज़ मेरा रोज़े सा हुआ,

हो दीदार मयस्सर, तो अपनी ईद हुज़ूर हो |


लब्ज़ कहाँ से लाए तेरे इस्तकबाल को "कर्मू",

जो खुबसूरत कहूँ, तो खूबसूरती को गुरूर हो |




सुरूर = नशा

इस्तकबाल = स्वागत/तारीफ

आयत = पवित्र कुरान की पंक्तियाँ

मयस्सर = नसीब


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