Thursday, September 26, 2013

आस्था अंधी नहीं

आस्था में सवाल-जवाब की गुंजाइश नहीं|
पर जब आस्था पर ही सवाल उठे, तब?

सवाल कीजिए...
उन बिचौलियों से,
जो आपके और ईश्वर के बीच होने का दावा करते हैं

सवाल कीजिए...
उस धर्म से, जिसका काम रास्ता दिखाना है
मगर वो आपको धर्मांध बनाता हो

सवाल कीजिए...
खुद से, जिसने भगवान को इतना दूर कर दिया,
कि मध्यस्थों की ज़रूरत पड़ी

सवाल कीजिए...
क्योंकि आस्था का मतलब जवाब ढुंढ़ना भी है
और सवाल किए बिना,
जवाब नहीं मिलता!

Thursday, September 12, 2013

अब बड़े हो गए हैं

चाँद,
जो मामा हुआ करता था कभी
आज एक सैटेलाइट है बस
वो दादी की कहानियों वाली बुढ़िया और खरगोश,
सुना है क्रेटर हैं असलियत में
चाँद फैवरिट डैस्टिनेशन था अपना
गाहे-बगाहे,
चल पड़ते जब जी चाहे,
मालूम हुआ है,
बिना स्पेस-सूट जा ही नहीं सकते वहाँ
ठीक ही तो है
बड़े जो हो गए हैं,
अब तो धरती पर भी बिन मुखौटा काम नहीं चलता

वाह री तालीम!
बचपन की सब कहानियों की क्रेडिबिलिटी घटा दी
बातों में वज़न बढ़ाने को,
चाँद की "ग्रैविटी" घटा दी?

दंगे होते रहेंगे

वो आए दिन लड़कियाँ छेड़ता है,
गुंडई किए फिरता है
कल जब किसी बिरादरी वाले से खा म खा लड़ा था,
कनपट्टी पर दो तुमने भी जड़ा था
मगर आज वो तुम्हारे कौम का है!
इसलिए, कि,
आज उसकी शिकार सलमा नहीं, कमला है?
मज़ाल किसी "काफ़िर" की,
जो उंगली भी उठा दे उसपर!
अब बात एक मामूली गुंडे से आगे निकल आई है
अब ये कौम की, मज़हब की लड़ाई है
अब कटेंगे हज़ारों गर्दन,
जलेंगे सैंकड़ो घर
तुम्हारे भी, मेरे भी

जब तक,
अच्छे-बुरे की पहचान
जाली वाली टोपी या तिलक से होगी
जब तक,
पाँच वक्त की नमाज़
या मंदिर में एक चढ़ावा
सारे गुनाहों पर पर्दा डालने को काफी है
जब तक,
बेगुनाहों की चीखें,
बेबस और लाचार नहीं,
हिंदु और मुसलमान रहेंगी...
तब तक,
वो दरिंदा तुम्हारे कौम का होगा
तब तक,
गलती "काफिरों" की होगी
और तब तक,
दंगे होते रहेंगे!