Thursday, September 12, 2013

अब बड़े हो गए हैं

चाँद,
जो मामा हुआ करता था कभी
आज एक सैटेलाइट है बस
वो दादी की कहानियों वाली बुढ़िया और खरगोश,
सुना है क्रेटर हैं असलियत में
चाँद फैवरिट डैस्टिनेशन था अपना
गाहे-बगाहे,
चल पड़ते जब जी चाहे,
मालूम हुआ है,
बिना स्पेस-सूट जा ही नहीं सकते वहाँ
ठीक ही तो है
बड़े जो हो गए हैं,
अब तो धरती पर भी बिन मुखौटा काम नहीं चलता

वाह री तालीम!
बचपन की सब कहानियों की क्रेडिबिलिटी घटा दी
बातों में वज़न बढ़ाने को,
चाँद की "ग्रैविटी" घटा दी?

1 comment:

Unknown said...

Waah bhai.