Thursday, September 12, 2013

दंगे होते रहेंगे

वो आए दिन लड़कियाँ छेड़ता है,
गुंडई किए फिरता है
कल जब किसी बिरादरी वाले से खा म खा लड़ा था,
कनपट्टी पर दो तुमने भी जड़ा था
मगर आज वो तुम्हारे कौम का है!
इसलिए, कि,
आज उसकी शिकार सलमा नहीं, कमला है?
मज़ाल किसी "काफ़िर" की,
जो उंगली भी उठा दे उसपर!
अब बात एक मामूली गुंडे से आगे निकल आई है
अब ये कौम की, मज़हब की लड़ाई है
अब कटेंगे हज़ारों गर्दन,
जलेंगे सैंकड़ो घर
तुम्हारे भी, मेरे भी

जब तक,
अच्छे-बुरे की पहचान
जाली वाली टोपी या तिलक से होगी
जब तक,
पाँच वक्त की नमाज़
या मंदिर में एक चढ़ावा
सारे गुनाहों पर पर्दा डालने को काफी है
जब तक,
बेगुनाहों की चीखें,
बेबस और लाचार नहीं,
हिंदु और मुसलमान रहेंगी...
तब तक,
वो दरिंदा तुम्हारे कौम का होगा
तब तक,
गलती "काफिरों" की होगी
और तब तक,
दंगे होते रहेंगे!


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