बारिश की बूँदें और ओस...
वैसे तो दोनों ही प्रेसिपिटेशन के फॉर्म्स हैं
पर दोनों में बुनियादी फर्क है थोड़ा।
ओस की बूँदें,
हौले-हौले प्यार से,
कब आ जाये, पता भी नहीं चलता!
फिर देखते ही देखते,
वृक्षों के पत्ते, घास के मैदान,
सब उसके आगोश में आ जाते हैं।
और बारिश,
अरेंज्ड मैरिज की तरह बांध दिया जाता है सबके गले से!
जैसे बादल पैट्रिआर्की दिखा रहा हो
मगर जब रात ढल जाती है,
और सुबह सूरज की किरणें कच्चू के पत्तों पर पड़ती हैं,
सारी बूँदें एक-सी ही टिमटिमाती हैं।
तब बारिश में और ओस में फर्क करना मुश्किल है