Wednesday, December 14, 2011

दिल्ली


शोर ही शोर है पर आवाज़ भी है,
मुल्क जो समझे वो अल्फाज़ भी है

बस सियासती पचड़ों का ठिकाना नहीं,
जम्हूरियत का एक परवाज़ भी है

सिर्फ एक ही कौम, इंसानियत का है
गुरबानी है, आरती है, और नमाज़ भी है

हज़रत साहब हैं, ग़ालिब भी यहीं के हैं
सूफियाना, कुछ शायराना अंदाज़ भी है

नफरत भी दिल से औ मुहब्बत भी,
दिल का हाकिम है, दिल नवाज़ भी है

तुम दिल्ली से कर लो लाख गिला "कर्मू"
दिलरुबा है तेरी, तुझे इस पर नाज़ भी है

2 comments:

Unknown said...

its good to see ki tum kabhi kabhi kuch acha bhi likh leta hai !!

KT said...

Karmu par antim panktiyon ke anusar aakhir aisa kya gila hain "dilli" see ??