तेरा आना जहाँ में जैसे कोई दस्तूर हो,
ग़म से भरी दुनिया, इक "ख़ुशी" तो ज़रूर हो |
निगाहें तो औरों की भी होंगी मयकशी,
तेरी खुशबू बस छू जाए 'गर तो सुरूर हो |
लालची-दिल बिदक जाये तुझे जो कोई और देखे,
सिरफ मेरे दिल के घरौंदे में तू मशहूर हो |
ख़यालों से एक पल भी तू जुदा न हुई,
तो क्या हुआ के निगाहों से अभी दूर हो |
मिलन की आस में लिखे शेर तो आयत हो गए,
अर्जियाँ, दरबार में उसके, जाने कब मंज़ूर हो |
इंतज़ार में तेरे, हर रोज़ मेरा रोज़े सा हुआ,
हो दीदार मयस्सर, तो अपनी ईद हुज़ूर हो |
लब्ज़ कहाँ से लाए तेरे इस्तकबाल को "कर्मू",
जो खुबसूरत कहूँ, तो खूबसूरती को गुरूर हो |
सुरूर = नशा
इस्तकबाल = स्वागत/तारीफ
आयत = पवित्र कुरान की पंक्तियाँ
मयस्सर = नसीब