Thursday, September 22, 2011

Remnants of thoughts, during Ramadan

अब तो रमज़ान में भी बस यही कारोबार होता है,
रोज़ा होता है अवाम का, सियासी इफ्तार होता है |
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इबादत में औ मोहब्बत में बस फर्क इतना है,
वो करते हैं सिर्फ रोज़े पर, इसे रोज़ करते हैं |
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सवाल रोज़ा रखने का नहीं, तोड़ने का है, या मौला
दो टुकड़ा खज़ूर हो मयस्सर, तो इफ्तार भी हो जाए |
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"तेरे अब्बू की तनख्वाह अभी आई नहीं है"
माँ ने कहा, हाथ में 5 का सिक्का बिठाते हुए
ईदी में तो "घोटाला" न कर अम्मी,
मैंने देखा है तुझे, डिब्बे में कई नोट छिपाते हुए |
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