Monday, November 28, 2011

गज़ल

हाँ मुमकिन है बेशक, उसका ख़ुदा होना,
इन्सां को नहीं हासिल मगर इन्सां होना |

पढ़ रक्खा है सबने ही सबक नेकी का लेकिन,
है शराफत का हशर सहूलियत पे फना होना |

कुफ्र को ही देखो ईमान बना लिया हमने,
रास आता न था हमको भी बे-ईमां होना |

के भड़कते नहीं शोले दिलों में शायरी से अब,
बढ़ रहा है यों हर शेर पे वाह-वाह होना |

उठेंगी उँगलियाँ ही बस जो आवाज़ दोगे,
मुश्किल है हाथ बढ़ाने का हौसला होना |

मर जाओगे तो कहेंगे लोग - भला था "कर्मू"
ले तेरे होने से अच्छा है तेरा ना होना |

6 comments:

Chanchal Prakasham said...

हम तो बस इस लिए शुक्रगुजार हैं कर्मु
की मुमकिन हुआ हमारा आपको जान पाना |

Ashish Kashikar said...

studd !! awesome hota jaa raha hai tu !!

Pessimist said...

waah sarkar waah

Manish Kumar said...

कुछ लिखे हैं कर्मू..... शब्द नहीं मिल रहे हैं प्रशंसा के लिए..... वाह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Kumar Gaurav said...

किये ज़िन्दगी में कई काम बेवजह हमने
अब जरूरत है हर काम का एक वजह होना
या यूँ की
पहले हर काम के होने में जरूरी था एक वजह
अब सोचूँ कुछ काम जरूरी है बेवजह होना ...

Very nice "गज़ल" Bhaiya .. :)

अभिनव said...

hausla afzai ke liye sabka dhanyawad :)