Wednesday, October 30, 2013

छुटभैया बड़प्पन

थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी,
आइंसटाइन ने सुझाया चाहे जैसे हो
इस्तेमाल हम अपनी मर्ज़ी से करते हैं
भगत को महान बताना है,
तो गाँधी को छोटा दिखा दो जी
नेहरू पर सवाल उठाए बिना तो,
न पटेल बड़े लगेंगे, न नेताजी

बड़े होने का, करने का,
यही फ़ूल प्रूफ तरीका है
बचपन से ही तो सीखा है
अपनी लकीर को,
बिना छेड़े, बड़ा करना हो
तो बाजू में एक छोटी लकीर खींच डालो
बचपन मे तो फिर भी खेंचते थे,
अब तो बस अस्यूम कर लेते हैं!

सवाल यह नहीं
कि बड़े होने का ये तरीका सही है
सवाल यह है,
कि क्या इससे होता कोई बड़ा भी है?
बड़े बनने की नहीं बस दिखने के लिए
लगा रहे ज़ोर है
लोगों में छोटे करने की, छोटे होने की लग गई होड़ है

आपस में नहीं, इस आदत से लड़ना होगा
बड़े होने के लिए,
लकीरों को खुद बढ़ना होगा

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