जब तक चाँद न दिखे, ईद नहीं होती
और चाँद भी जब निकलता है, तभी दिखता है
बांकी हमसे जब चाहे जो दिखा लो...
हर साल 15 अगस्त को पाकिस्तान का झंडा
या आज़ादी की लड़ाई में गाँधी का हिडेन अजेंडा
हम अपनी सहूलियत से,
किसी आतंकवादी में भगवा या इस्लाम देख लेते हैं
और हर भ्रष्ट नेता में,
अल्पसंख्यक या दलित ही दिखता है
असामी या मणिपुरी भाई जब बंगलोर-चेन्नई छोड़ कर जाते हैं,
हम तुरंत पड़ोसी मुल्क का हाथ देख लेते हैं
हर दुसरे दिन, हम देख लेते हैं,
किसी मुसलमान को मूर्ति तोड़ते,
या किसी हिन्दू को उसका सर फोड़ते
घटनाओं के दिखने के लिए उनका होना ज़रूरी नहीं है !
हाँ, ईद इनसे अलग है
इसमें जो होता है वही दिखता है
चाँद होता है, तो दिखता है
दोस्त होते हैं, तो दिखते हैं
प्यार होता है, तो गले लगाते है
कल को शायद चीजें जैसी हैं वैसी दिखने लगे...
वैसे अभी तो सेवइयाँ दिख रही हैं,
फ़िलहाल इसी से काम चलाते हैं |
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