रोज़ रात,
जब मैं ऑफिस से घर जाती,
चाँद मेरे साथ-साथ चलता
मुझे देखकर मुस्कुराता,
मैं उस से अपने किस्से सुनाती,
पर वो कुछ न कहता,
अजीब दोस्त था मेरा!
उस रात,
जब मैं हवस का शिकार हुई,
चाँद तब भी खामोश था
मैं चीखी, चिल्लाई,
लड़-हार कर मेरे अन्दर की लड़की अब मर गयी थी
पर उस दरिन्दे को इस से क्या मतलब,
उसे तो बस देह चाहिए था
और देह मेरा, अब भी जिंदा था
कुछ देर के बाद शायद तरस आ गया मेरी हालत पर,
या शायद "भूख" मिट गयी उसकी
मुझे, अपनी "मर्दानगी" के सबूत को,
सड़क पर छोड़ वो चला गया
मैं बेजान पड़ी सोचती रही,
संयम उसने खोया,
इंसानियत को बदनाम उसने किया,
फिर इज्ज़त मेरी क्यूँ लुटी?
जबकि मुझे पता था,
कल न्यूज़ चैनल पर चेहरा मेरा ही ब्लर्रड होगा,
मोहल्ले वाले मेरे ही आबरू के किस्से उछालेंगे
और वो,
छुट्टा घूम रहा होगा,
दोस्तों से अपनी "वीर-गाथा" सुनाता!
मैं आज भी वहीँ पड़ी हूँ,
बेजान
और चाँद,
आज भी बस देख ही रहा है!
जब मैं ऑफिस से घर जाती,
चाँद मेरे साथ-साथ चलता
मुझे देखकर मुस्कुराता,
मैं उस से अपने किस्से सुनाती,
पर वो कुछ न कहता,
अजीब दोस्त था मेरा!
उस रात,
जब मैं हवस का शिकार हुई,
चाँद तब भी खामोश था
मैं चीखी, चिल्लाई,
लड़-हार कर मेरे अन्दर की लड़की अब मर गयी थी
पर उस दरिन्दे को इस से क्या मतलब,
उसे तो बस देह चाहिए था
और देह मेरा, अब भी जिंदा था
कुछ देर के बाद शायद तरस आ गया मेरी हालत पर,
या शायद "भूख" मिट गयी उसकी
मुझे, अपनी "मर्दानगी" के सबूत को,
सड़क पर छोड़ वो चला गया
मैं बेजान पड़ी सोचती रही,
संयम उसने खोया,
इंसानियत को बदनाम उसने किया,
फिर इज्ज़त मेरी क्यूँ लुटी?
जबकि मुझे पता था,
कल न्यूज़ चैनल पर चेहरा मेरा ही ब्लर्रड होगा,
मोहल्ले वाले मेरे ही आबरू के किस्से उछालेंगे
और वो,
छुट्टा घूम रहा होगा,
दोस्तों से अपनी "वीर-गाथा" सुनाता!
मैं आज भी वहीँ पड़ी हूँ,
बेजान
और चाँद,
आज भी बस देख ही रहा है!
Tried a different theme, sometimes back.
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